"हम तो राह के किरदार हैं..."
हम वो नहीं जो मंज़िल के किस्सों में लिखे जाते हैं,
हम तो वो मुसाफ़िर हैं जो हर मोड़ पर भुला दिए जाते हैं।
हमारी ज़रूरत उस वक़्त होती है,
जब किसी को रास्ता पूछना हो —
और फिर हम गुमनाम हवाओं में खो जाते हैं।
हम वो हैं जो सफ़र में आते-जाते रिश्तों का नाम तक नहीं पूछते,
बस थोड़ी देर के लिए साथ बैठते हैं,
और फिर यादों में धुंध बनकर छा जाते हैं।
हमने सीढ़ियाँ चढ़ना सीखा,
उनके हाथ थाम कर जिन्होंने बस ऊँचाइयों तक छोड़ दिया —
वापस लौटकर किसी ने नहीं देखा कि हम अभी भी वहीं खड़े हैं।
हमने आंखें मूंदकर भरोसे की गठरी उठाई,
कांटों से भरे रास्तों पर नंगे पाँव चलना सीखा,
पर अब वही आंखें तरस रही हैं —
किसी की उंगली थामकर एक सही रास्ता पार करने को।
हम टूटी बांस की सीढ़ियाँ पकड़कर दूसरों को ऊँचाइयाँ चढ़ाते रहे,
पर आज जब हमारी बारी आई —
तो मजबूत सीढ़ियाँ भी हमसे मुंह मोड़ गईं।
हम वो हैं जो खामोशी में चीखें दफन करते रहे,
जिनके ज़ख्म आंखों से बोले, पर किसी ने सुना नहीं।
अब तो रब से यही गुहार है —
"या रब, बस तू ही मेरी उंगली पकड़,
क्योंकि अब न कोई सहारा है, न कोई रास्ता साफ़।
बस तू ही रह गया है, जो मुझे अंधेरों से निकाल सकता है।"
आज का दौर की सच्ची कहानी
लेखक बिंदास