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ईद के जज़्बे और गंगा-जमुनी तहज़ीब का पैग़ाम — विशेष संदेश : जितेंद्र मणि

ईद के जज़्बे और गंगा-जमुनी तहज़ीब का पैग़ाम — विशेष संदेश : जितेंद्र मणि

रिपोर्ट: SKR NEWS ब्यूरो
नई दिल्ली |
जब दिलों में मोहब्बत का चिराग जलता है, तब त्योहार सिर्फ रस्म नहीं रहते, बल्कि इंसानियत के पैग़ाम बन जाते हैं। ईद-उल-फितर के इस पाक मौके पर दिल्ली पुलिस अकादमी के डिप्टी डायरेक्टर, श्री जितेंद्र मणि, आईपीएस ने एक दिल को छू जाने वाला संदेश देकर सभी धर्मों, समुदायों और इंसानी मूल्यों के प्रति एकता और समरसता का अद्भुत उदाहरण पेश किया है।
अपने विशेष संदेश में उन्होंने कहा—

> "ईद पर दी जाने वाली मुबारकबाद महज़ लफ़्ज़ नहीं, बल्कि मोहब्बत की रूहानी चिट्ठी है। अल्लाह आपका इक़बाल बुलंद करे, दामन खुशियों से भर दे, और आपकी तमाम दुआएं क़ुबूल हो।"

उन्होंने कुरान और हज़रत मोहम्मद साहब के फरमानों का हवाला देते हुए बताया कि ईद-उल-फितर सिर्फ एक जश्न नहीं बल्कि रोज़ेदारों के लिए खुदा की तरफ से इनाम है—एक ऐसा एहसास जिसे लफ्ज़ों में नहीं, दिल की पाकीज़गी में महसूस किया जाता है।

 दिल से दिल मिलाने का दिन 
ईद गले मिलने की सुन्नत है। जितेंद्र मणि आईपीएस, डिप्टी डायरेक्टर, दिल्ली पुलिस अकादमी

 ने शायराना अंदाज़ में कहा:
> "ईद का दिन है, गले आज तो मिल ले ज़ालिम, रस्म-ए-दुनिया भी है, मौक़ा भी है, दस्तूर भी है।"

उन्होंने कहा कि भारत वो सरज़मीं है जहां एक ही समय में कोई रोज़े रखता है, तो कोई नवरात्रि का उपवास करता है। कोई होलिका दहन में रंग बिखेरता है, तो कोई तरावीह में सजदा करता है। यही तो है हमारी गंगा-जमुनी तहज़ीब, जहां सिवइयां और गुजिया दोनों की मिठास रिश्तों में घुलती है।
हिंदुस्तान की रूह से जुड़ा पैग़ाम 
> "हम उस हिंदुस्तान में रहते हैं जहां ईद खत्म नहीं होती कि नवरात्र शुरू हो जाते हैं—यह त्योहारों, व्रतों और परंपराओं की वो माला है जो हर धर्म को जोड़ती है, इंसानियत को सींचती है।"
नफ़रत नहीं, मोहब्बत का पैग़ाम 
इस संदेश का मकसद सिर्फ ईद की बधाई देना नहीं, बल्कि सभी भारतीयों को यह याद दिलाना है कि हम सब एक हैं। जितेंद्र मणि ने लिखा:

> "अब ईद के दिन हाथ नहीं, दिल मिलाएं हम,
दिलों में मोहब्बत की शमाएं जलाएं हम।"

और जब चाँद की बात चली...
ईद के चाँद को उन्होंने मोहब्बत का प्रतीक बताया और बड़े ही खूबसूरत 
अल्फाज़ों में कहा:
> "उत्तवीस्वी की सब को तेरी दीद हो गई,
अब चाँद हो कि न हो, मेरी ईद हो गई।"
अंत में एक साझा दुआ 
> "ईश्वर, अल्लाह, रब हमें इंसानियत का रास्ता दिखाए। हम सब मिलकर भारत की इस साझी संस्कृति को महकाते रहें।"
जय हिंद, जय भारत — खुदा हाफिज 
इस प्रेरणादायक संदेश के माध्यम से जितेंद्र मणि, आईपीएस ने यह सिद्ध कर दिया कि अगर अफसर शायर हो जाए और इंसानियत से सराबोर हो जाए, तो शब्द भी इबादत बन जाते हैं।
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