दिल्ली नगर निगम पार्षद का अधिकार और ज़िम्मेदारियाँ?
SKR NEWS | सियासत का राज़
नई दिल्ली | दिनांक: 18 जून 2025
दिल्ली नगर निगम (MCD) में पार्षद का पद भले ही स्थानीय स्तर का हो, लेकिन जनता की समस्याओं से सबसे नज़दीकी रिश्ता इसी जनप्रतिनिधि का होता है। अक्सर लोग पार्षदों से अपेक्षा करते हैं कि वह हर समस्या—सड़क से लेकर सीवर तक—का समाधान करवा दें। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दिल्ली नगर निगम के पार्षद के अधिकार क्या होते हैं? आइए जानते हैं इस रिपोर्ट में—
पार्षद कौन होता है?
पार्षद (Councilor) एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि होता है जो दिल्ली नगर निगम क्षेत्र में किसी एक वार्ड का प्रतिनिधित्व करता है। वह नगर निगम के सदन का हिस्सा होता है।
पार्षद के मुख्य अधिकार और ज़िम्मेदारियाँ
1. स्थानीय विकास कार्यों में भागीदारी
सड़क निर्माण और मरम्मत
स्ट्रीट लाइट की व्यवस्था
नालियों और सीवर की सफाई
सार्वजनिक पार्कों का रखरखाव
2. बजट और योजनाओं में सुझाव देना
पार्षद अपने क्षेत्र के लिए विकास योजनाएं और बजट प्रस्ताव दे सकते हैं, जो मंजूरी के बाद MCD द्वारा क्रियान्वित किए जाते हैं।
3. नगर निगम बैठकों में भागीदारी
पार्षद नगर निगम की बैठकों में भाग लेते हैं, प्रस्तावों पर बहस करते हैं और नीतियों पर वोट डालते हैं।
4. जनसमस्याओं को उठाना
जनता की समस्याएं जैसे कूड़ा-करकट, जल निकासी, सफाई व्यवस्था, पशु नियंत्रण आदि को अधिकारियों तक पहुँचाना और समाधान के लिए दबाव बनाना।
5. स्थानीय निकाय अधिकारियों से समन्वय
पार्षद स्थानीय MCD इंजीनियरों, स्वास्थ्य विभाग, सफाई निरीक्षकों आदि से तालमेल रखते हैं ताकि क्षेत्र में काम हो सके।
6. स्वीकृत निधि (Councillor Fund)
पार्षद को एक निश्चित फंड (लगभग ₹50 लाख/वर्ष) मिलता है जिसे वे अपने वार्ड के छोटे-मोटे विकास कार्यों में उपयोग कर सकते हैं।
क्या नहीं कर सकते पार्षद?
पुलिस प्रशासन, ट्रैफिक व्यवस्था, बिजली, पानी (DJB) और स्कूल-कॉलेज जैसे मुद्दे उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं।
वो अफसरों को निलंबित नहीं कर सकते, लेकिन उनके ख़िलाफ़ शिकायत कर सकते हैं।
जनता से संवाद है सबसे बड़ा हथियार
पार्षद की सबसे बड़ी ताक़त है जनता से सीधा संवाद। जनता जितना सक्रिय होगी, पार्षद उतना जवाबदेह होगा। इसलिए जनता को भी अपने पार्षद से मिलते रहना चाहिए, सुझाव देने चाहिए और ज़िम्मेदारी से सवाल पूछना चाहिए।
निष्कर्ष
पार्षद का पद छोटा नहीं है। वे जनता और निगम प्रशासन के बीच एक सेतु होते हैं। अगर वे ईमानदारी से काम करें तो वार्ड का कायाकल्प हो सकता है। लेकिन इसके लिए पारदर्शिता, ज़िम्मेदारी और जनता की जागरूकता बेहद ज़रूरी है।
रिपोर्ट: राशिद चौधरी
संपादक, सियासत का राज़ | SKR NEWS